आर्थिक सुधार
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भारत मे आर्थिक सुधारोँ की शुरूआत सन 1990 से शुरू हुई । 1990 के पहले भारत मे आर्थिक विकास बहुत ही धीमी गति से हो रहा था। भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास काफी धीमा था ।
[बदलें] भारत का आर्थिक इतिहास
मुख्य लेख - भारत का आर्थिक इतिहास
भारत एक समय मे सोने की चिडिया कहलाता था। भारत की अर्थ्व्यवस्था को मोटे तौर पो तीन भागोन मे बांटा जा सकता है ।
- ब्रिटिश वक़्त से पहले
- ब्रिटिश वक़्त मे
- आज़ादी के बाद
[बदलें] आधुनिक विश्व का आर्थिक इतिहास
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमरीका और सोवियत रूस मे शीत युद्ध छिड गया । ये कोइ युद्ध नही था पर इस्से सारा विश्व दो केन्द्रोँ मे बट गया ।
शीत युद्ध के दौरान अमरीका, एंग्लैंड, जर्मनी (पश्चिम), औस्ट्एलिया, [ [फ्रांस]], कनाडा, स्पेन एक तरफ थे । ये सभी देश लोक्तंत्रिक थे और यहा पे खुली अर्थव्यवस्था की नीति को अप्नाया गया । लोगो को व्यापार कर्ने की खुली छूट थी। शयर बाज़ार मे पैसा लगाने की छूट थी । इन देशो मे काफी सरी बडी-बडी कम्पनिया बनी । इन कम्पनियो मे नयी नयी रिसर्च होती थी । विश्वविद्यालय , सूचना प्रौद्योगिकी, इंजिनेअरिंग उद्योग, बैंक आदि स अभी खेत्रोँ मे जम के तरक्की हुई । ये सभी देश एक दूस्रे देशोँ से व्यापार को बढावा देते थे । 1945 के बाद से इन सभी देशोँ ने खूब तरक्की की ।
दूसरी तरफ [ [रूस]], चीन, म्यन्मार, पूर्वी जर्मनी समेत कयी और देश थे। ये वे देश थे जहा पे समाजवाद की अर्थ नीति अप्नायी गयी । यहान पे ज़्यादातर उद्योगो पे कडा सरकारी नियंत्रण होता था। उद्योगो से होने वाले मुनाफे पे सर्कारी हक होता था। आम तौ पे ये देश दूस्रे लोक्तंत्रिक देशो के साथ ज़्यादा व्यापर नही कर्ते थे । इस तरह की अर्थ नीति के कारण यहा के उद्योगो मे ज़्यादा प्रतिस्पर्धा नही होती थी । आम लोगो को भी मुनाफा कमाने क कोइ इंसेंटिव नही होता था । इन करणो से इन देशो मे बहुत ज़्यादा त्तरकी नही हुई । सन 3-अक्टूबर-1990 मे पूर्व जर्मनी और पश्चिम जर्मनी का विलय हुआ । सन्युक्त जर्मनी ने तरकीशुदा पश्चिमी जर्मनी की तरह खुली अर्थव्यवस्था और लोक्तंत्र को अप्नाया । फिर 1991 मे सोवियत रूस का विखंडन हुआ । रूस समेत 15 देशो का जन्म हुआ । रूस ने भी समाजवाद को छोड के खुली अर्थ्व्यवस्था को अपनाया । चीन ने समाजवाद को पूरी तरह तो नही छोडा पर 1970 के अंत से उदार नीतियो को अपनाया और अगले 3 सालोन मे बेशुमार तरकी की । चेकोसलोवाकिआ भी समाजवादी देश था । 1-जंवरी-1993 को इस्का चेक रिपब्लिक और स्लोवाकिया मे विखंडन हुआ । इ स देशो ने भी समाज्वाद छोड के लोक्तंत्र और शुली aर्थ्व्यवस्था को अपनाया ।
[बदलें] 1990 के बाद से भारत का आर्थिक इतिहास
आज़ादी के बाद भारत के तत्कलीन प्रधान मंत्री पँ जवाहर लाल ने नौन अलाइंड मूव्मेंट को भारत की प्रमुख विदेश नीति बनाया । इस दौरान भारत ने सोवियत रूस से दोस्ती बढयी । सोवियत रूस मे समाजवाद था । यूँ तो भारत ने समाज वाद को पूरी तरह से नही अप्नाया पर भारत की आर्थिक नीति मे समाज वाद के लक्शण साफ देखेय जा सक्ते थे । भारत मे ज्यादा तर उद्योगो को सरकारी नियंत्रण के अंतर्गत रक्खे जाने के लिये कयी तरह के मियम बनये गये। इस तरनह की नीति को कयी अर्थ्शास्त्रियोँ ने लाइसेंस राज और इंस्पेक्ट अर रज का नाम दिया । बिजली , सडकेँ, पानी, टेलीफोन, रेल यातायात, हवई यातायात, होटल, एन सभी पे सरकारी नियंत्रण था । या तो निजी क्शेत्र को इन उद्योगो मे पूंजी निवेश की अनुमती नही थी या फिर बहुत ही नियंत्रित अनुमती थी । दूसअरे कयी उद्योगो मे (जैसे खिलौने बनाना, रीटेल, वगैरह ) बडी निजी कम्पनियो को पूंजी निवेश की अनुमती नही थी । बैंको को भे सरकारी नियंत्रण मे रखा जाता था ।
1951 से 1979 तक भारतीय आर्थिक विकास दर 3.1 प्रतिशत थी । पर कैपिटा विकास दर 1.0% थी । विश्व मे इसे हिन्दू ग्रोथ रेट के नाम से जाना जाता था । भारतीय उद्योगो का विकास दर 5.4 प्रतिशत था । कृषि विकास दर 3.0 प्रतिशत था । कयी कारणो से भारत की आर्थिक विकास बहुत कम था। मुख्य कारण थे
- क़ृषि उद्योग मे संस्थागत कमियाँ
- देश मे कम तक्नीकी विकास
- भारत की अर्थ्व्यवस्था का विश्व के दूसरे तर्क्की शुदा देशो से इंटिग्रेटेड न होना
- चीन और पकिस्तान से हुए चार युद्ध
- बंग्लादेशी रिफ्यूजियो की देश मे बाड
- 1965, 1966, 1971, और 1972 पडे हुए चार सूखे
- देश के वित्तीय संस्थानो का पिछ्डा हुआ होना
- विदेशी पूंजी निवेश पे सरकारी रोक
- शेयर बाज़ार मे अनेक बडे और छोटे घपले
- कम शिक्शा दर
- कम पढी लिखी भारी जंसंक्या
भारत मे सन 1985 से बैलैंस औफ पेमेंट की सम्स या शुरू हुई । 1991 मे चन्द्रशेखर सरकार के शासन के दौरान भारत मे बैलैंस औफ पेमेंट की समस्या ने विकराल रूप धारण किया और भारत की पहले से चर्मरायी हुई अर्थ्व्यवस्था घुट्नो पे आ गयी । भारत मे विदेशी मुद्रा का भंडार केवल तीन हफ्ते के आयातो के बराबर रह गया। ये एक बहुत ही गम्भीर समस्या थी । नर्सिम्हा राओ के नेत्रत्व वाली भारतीय सरकार ने भारत मे बडे पैमाने मे आर्थिक सुधार कर्ने क फैस्ला किया । उदारीकरण कह्लाने वाले इन सुधारो के आर्किटेक्ट थे मन्मोहन सिन्ह । मन्मोहन सिन्ह ने आने वाले समय मे भारत की अर्थ्नीति को पूरी तरह से बदल्ने की शुरुआत की । उंके किये हुए आर्थिक सुधार मेंली तीन क्श्रेणियो मे आते है
- उदारीकरण (लिब्रलाइज़ेशन)
- वैश्वीकरण (ग्लोबलाइज़ेशन)
- निजीकरण (प्राइवेटाइज़ेशन)
1996 से 1998 तक पी चिदम्ब्रम भारत के वित्त मंत्री हुए और उन्होने मन्मोहन सिन्ह की नीतियो को आगे बढाया ।
1998 से 2004 तक देश मे भार्तीय जंता पार्टी की सर्कार ने और भी ज़्यादा उदारीकरण और निजीकरण किया।
इस्के बाद 2004 मे आधुनिक भारत की अर्थ्नीति के रचयिता मन्मोहन सिन्ह भारत के प्रधान्मंत्री बने और पी चिदम्ब्रम वित्त मंत्री ।
इन सभी सालो मे भारत ने कफी तेज़ तरक्की की । अर्थ्व्यवस्था मे आमूल-चूल परिवर्तन हुए और भारत ने विश्व अर्थ्व्यवस्था मे अपना स्थान बनाना शुरू किया।