योग
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योगश्चित्तवृत्ति निरोधः’। इस सूत्र का अर्थ है-योग वह है जो देह और चित्त की खीच-तान के बीच मानव को अनेक जन्मों तक भी आत्मा दर्शन से वंछित रहने से बचाता है। चित्तवृतियों का निरोध दमन से नहीं, उसे जानकर उत्पन्न ही न होने देना है।
योग एक पूर्ण विज्ञान है, एक पूर्ण जीवन शैली है, एक पूर्ण चिकित्सा पद्धति है एवं एक पूर्ण अध्यात्म विद्या है। योग की लोकप्रियता का रहस्य यह है कि यह लिंग, जाति, वर्ग, सम्प्रदाय, क्षेत्र एवं भाषा भेद की संकीर्णताओं से कभी आबद्ध नहीं रहा है। साधक, चिंतक, बैरागी, अभ्यासी, ब्रह्मचारी, गृहस्थ कोई भी इसका सान्निध्य प्राप्त कर लाभांवित हो सकता है। व्यक्ति के निर्माण और उत्थान में ही नहीं बल्कि परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के चहुंमुखी विकास में भी यह उपयोगी सिद्ध हुआ है। योग मनुष्य को सकारात्मक चिंतन के प्रशस्त पथ पर लाने की एक अद्भुत विद्या है जिसे करोड़ों वर्ष पूर्व भारत के प्रज्ञावान ऋषि-मुनियों ने आविष्कृत किया था। महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग के रूप में इसे अनुशासनबद्ध, सम्पादित एवं निष्पादित किया।
[बदलें] अर्थ एवं परिभाषा
योग का सामान्य अर्थ है दो चीज़ों को 'जोड़ना', दो वस्तुओं में मिलाप कराना। जब मन को एकाग्र कर के ध्यानावस्थित रूप में जीव परमात्मा से मिलन की आकांक्षा करता है वह भी योग है । योगासनों को आधुनिक जीवन में बस व्यायाम ही माना जाने लगा है । अन्ग्रेज़ी में इसे योग के बजाय 'योगा' कहा जाता है। योग कई प्रकार की शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक गतिविधियों को अपने दायरे में लेता है जिनका उद्देश्य है मनुष्य को अपने सच्चे रूप के बारे में ज्ञान कराना जिससे वह मानव जीवन के परम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त कर सके।
योग वैदिक/हिन्दू तत्त्वशास्त्र की छः दर्शन विचारधाराओं में से एक है। यहां इसका तात्पर्य राजयोग से है जो एक ब्रह्मन् पाने के लिये ईश्वरीय ध्यान का राजसी मार्ग है। all the 'Ashans'and pranayams includes in this
कैपलर के संस्कृत - अंग्रेज़ी शब्दकोष में योग की अंग्रेज़ी परिभाषा है: m. collection or concentration of the mind, meditation, contemplation ([1])
योग के निपुण अभ्यासी पुरुष को योगी कहा जाता है , स्त्री को योगिनी। हिन्दू धर्म में योग के और कई प्रकार भी हैं जैसे कि निष्काम कर्म योग, आत्महित विहीन भक्ति योग और ज्ञान योग का विवेकपूर्ण ध्यान।
योग पर पतञ्जलि मुनि ने योगसूत्र लगभग १५० ई.पू. में लिखा। पतंजलि के अनुसार अष्टांग योग का पालन करने से व्यक्ति अपने मन को शान्त कर सकता है और शाश्वत ब्रह्म में समा सकता है। इसी अष्टांग पथ ने बाद में आनेवाले राज योग, तन्त्र और बौध वज्रयान योग की नीवं डाली।
अष्टांग योग के आठ भाग ये हैं:
- यम (moral codes)
- नियम (self-purification and study)
- आसन (posture)
- प्राणायाम (breath control)
- प्रत्याहार (sense control)
- धरण (concentration)
- ध्यान (meditation)
- समाधि (absorption)later,it also divided in two parts 1.Sabij Samadhi & 2.Nirbij Samadhi
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